Tuesday, October 6, 2009

इस्लाम व विश्व की अन्य सभ्यताओं में नारी की स्थिति की तुलना Compersion Between Islam & Other Civilization

"भूतकाल में स्त्रियों का अपमान किया जाता था और और उनका प्रयोग केवल काम वासना के लिए किया जाता था|"
इतिहास से लिए निम्न उदहारण इस तथ्य की पूर्ण व्याख्या करते हैं कि पूर्व की सभ्यता में औरतों का स्थान इस क़दर गिरा हुआ था कि उनको प्राथमिक मानव सम्मान भी नहीं दिया गया था -
बेबीलोन सभ्यता

औरतें अपमानित की जातीं और बेबिलोनिया के कानून में उनको हक और अधिकार से वंचित रखा जाता था | यदि कोई व्यक्ति किसी औरत की हत्या कर देता था तो उसको दंड देने के बजाये उसकी पत्नी को मौत के घाट उतार दिया जाता था |
यूनानी सभ्यता

इस सभ्यता को प्राचीन सभ्यताओं में अत्यंत श्रेष्ट माना जाता है| इस 'अत्यंत श्रेष्ट' व्यवस्था के अनुसार औरतों को सभी अधिकारों से वंचित रखा जाता था और वे नीच वस्तु के रूप में देखी जाती थी | यूनानी देवगाथा में 'पान्डोरा' नाम की एक काल्पनिक स्त्री पूरी मानवजाति के दुखों की जड़ मानी जाती है | यूनानी लोग स्त्रियों को पुरुषों के मुकाबले तुच्छ मानते थे | हालाँकि उनकी पवित्रता अमूल्य थी और उनका सम्मान किया जाता था,
लेकिन बाद में यूनानी लोग अंहकार और काम वासना में लिप्त हो गए | वैश्यावृत्ति यूनानी समाज के हर वर्ग में आम रिवाज़ बन गयी थी |

रोमन सभ्यता

जब रोमन सभ्यता अपने गौरव के चरम सीमा पर थी, उस समय एक पुरुष को अपनी पत्नी का जीवन छिनने का अधिकार था | वैश्यावृत्ति और नग्नता रोमन सभ्यता में आम थी|

मिश्री सभ्यता

मिश्री सभ्यता स्त्रियों को शैतान का रूप मानते थे|

इस्लाम से पहले का अरब

इस्लाम से पहले अरब में औरतों को नीचा मन जाता था और जब कभी किसी लड़की का जन्म होता था तो आमतौर पर उसे दफना दिया जाता था |

"इस्लाम में औरतों की जो स्थिति है, उस पर सेक्युलर मिडिया का ज़बरदस्त हमला होता है| वे परदे और इस्लामी लिबास को इस्लामी कानून में स्त्रियों की दासता के मिसाल के रूप में पेश करते हैं | जबकि यह बिलकुल ही झूठ है और पश्चिमी समाज का डर है, जो उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर रहा है |"

प्रस्तुति- सलीम खान

Thursday, August 6, 2009

बी स एन ल करेगा अब आपके घर के पास में ही वसूली : बिल की


आज सबेरे अखबार में पढ़ा की भारत संचार निगम लिमिटेड याने बी स एन ल छत्तीसगढ में नई योजना शुरू करने जा रही है जिसका कहना कुछ ऐसा है बिल बुगतान की असुविधा को ख़त्म करने के लिए बी स न ल ने किसी निजी कंपनी से करार कर बहुतायत में बिल भुगतान या यु कहे की आपके घर के आस पास ही वसूली सेंटर खोलने का निर्णय लिया है जिसके लिए जगह - जगह काउंटर खोलने का प्रावधन भी है पर वो ये भूल गए की वे अपना ध्यान वसूली से हटा कर सुविधा देने पर भी लगते तो शायद उपभोक्तो को राहत मिलती ४०% कनेक्शन तक पहुच चुकी भारत संचार निगम लिमिटेड में ब्राड बैंड याने इंटरनेट ने फिर जान फुक दी और वो फिर से हरा भरा हो लहलहा उठा , बावजूद उसके आज भारत संचार निगम लिमिटेड ब्राड बैंड का कनेक्शन बाटने तक ही सीमित है . ब्राड बैंड की स्पीड और लिंक फेल जैसी परेशानी से आज हर कोई वाकिफ है तो सुविधा और सर्विस से कोसो दूर उपरोक्त न्यूज़ सुनने मिले तो यही कहा जा सकता है की बी स एन ल ने भी छत्तीसगढ को सरकारी कर्मचारी की तरह दुधारू गाय ही समझ लिया है और ठेकेदारी प्रथा में विश्वाश रखने वाले बी स एन ल के शीर्ष अधिकारियो ने फिर से एक नया शगूफा छोड़ दिया
बहरहाल बी स एन ल की कार्य प्रणाली किसी से छुपी नहीं है तो उन्हें मेरा सुझाव यह है की अगर कनेक्शन बाटने के बाद सुविधा याने सर्विस पर भी तवज्जो दे और जहा वे घर के पास बिल जमा करने के लिए काउंटर खोलने की बात कर रहे है क्या वे उसी तरह घर के पास ही उपभोक्ता के कम्प्लेंट भी सुनेगे या उसे अनदेखा कर देगे मतलब वसूली के लिए पास में काउंटर खोल रहे तो उसी तरह कम्पलेंट और सुविधा के लिए भी सुलभ पहुच किसी व्यवस्था का कोई प्रावधान है की बस यु ही .........................

Friday, April 10, 2009

जिंदल पर चला जूता


नेताओं पर जूता फेंकने की घटना में इजाफा होता जा रहा है पत्रकार जरनैल सिंह  द्वारा  गृहमंत्री पी चिदंबरम  पर जूता  फेकने के बाद अब कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल को भी एक फ्लाईंग जूते का सामना करना पडा.आज कुरुक्षेत्र में एक चुनावी रैली के दौरान एक रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल ने नवीन जिंदल को निशाना लगाकर जूता फेंका।
  सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक  कांग्रेसी नेताओं, उनके वादों और कांग्रेस की नीतियों से नाराज होकर  रिटायर्ड प्रिंसिपल राजपाल ने  नाराजगी जताते हुए कुरुक्षेत्र से कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल पर भरी चुनावी सभा के दौरान उनपर जूता फेंका, लेकिन निशाना चूक गया और जूता नवीन जिंदल को नहीं लगा.हालांकि कांग्रेस का दावा है कि वह शराब के नशे में थे और इस घटना के पीछे विरोधियों का हाथ है। फिलहाल राजपाल को पुलिस ने हिरासत में  लिया ओए पुछ्ताछ के बाद छोड़ दिया 
 

Tuesday, April 7, 2009

गृहमंत्री चिदंबरम पर पत्रकार ने जूता फेंका


गृहमंत्री चिदंबरम पर पत्रकार ने जूता फेंका
इराक में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बूश पर जूता फेंकने की घटना भारत में भी तरोताजा हो गई आज नई दिल्ली में मंगलवार को गृह मंत्री पी चिदंबरम की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हिन्दी अखबार दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने भावना में बहकर उन पर जूता फेंका।

Sunday, April 5, 2009

युवाओँ की भड़ास


आज हमारे देश को एक युवा नेतृत्व की सक्त जरुरत है एक युवा ही समाज को बदल सकता है एक युवा ही समाज में फैले आतंकवाद और नक्सलवाद का मुहतोड़ जबाब दे सकता है एक युवा ही हमें निर्णायक और मजबूत सरकार दे सकता हैमगर आज भी हर राजनीतिक पार्टी में सिर्फ और सिर्फ युवाओँ का शोषण हुआ है आज विधानसभा हो या लोकसभा सभी चुनावो में प्रत्याशियौ के जीत का श्रेय युवाओँ को ही जाता है क्योकि युवा ही दिनरात मेहनत कर के प्रत्याशी को सफलता दिलाता हैहर राजनीतिक पार्टी युवाओँ को जोड़ने के लिए उसे ३३% के आरक्षण की बात कहती है मगर चुनाव के दौरान उन्हें टिकट देने की ओपचारिकता मात्र कर दी जाती है और उन्हें चुनाव प्रचार की कमान का झुनझुना पकडा दिया जाता हैआज जहा भी राजनितिक पार्टियों ने युवाओँ को अवसर दिया है वहा यूवा 90% तक खरा उतरा है जबकि ये बुढे नेता टिकट बटवारे को लेकर आपस में लड़झगड़ कार आपसी भीतरघात पैदा क़र पार्टी और अपनी हार का कारण बनते है

आज राहुल गाधी युवाओँ को आरक्षण दिलाने के लिए संघर्ष रत है जिसकी मै प्रशंसा करता हु आज जितने भी आन्दोलन हो रहे है उनका सफल नेतृत्त्व एक युवा ही करता है आज रमन सरकार छात्र हित और युवा हित में एक पैसा का कम नहीं क़र रही है इसी के विरोध में आन्दोलन के डर को कारण आज भा.ज.पा. शासित प्रदेश में छात्र संघ चुनाव में रोक लगा दी गई है मगर भा.ज.पा. छात्र संघ को रोक नही सकती वो छात्र संघ तो रोकसकती है मगर छात्रों के इरादों को नहीं आज छ.ग. में बेरोजगारी दिनों दिन बढती जा रही है मगर बेरोजगारो को नौकरी तो दूर बेरोजगारी भत्ता तक नसीब नहीं हो रहा है
आखीर कबतक हम युवाओँ का शोषण होता रहेगा .........जागो यूवा जागो अपना अधिकार मांगो................{अम्बर जायसवाल पेंड्रा {N.S.U.I प्रसीडेंट}


जाग रहा है युवा सावधान नेता
इससे ये तो समझ में आने लगा है की अब युवा जाग रहा है उसे ये भी पता है कि चुनाव में प्रचार से लेकर पोलिग बूथ में अपने प्रत्याशी की कमान सभालते हुए युवा ही तैनात रहता है , है बावजूद उसके उसे सीर्फ़ ठोकरे ही मिलती है तो बस अब वो दिन दूर नहीं जब नेता तो नाम का नेता होगा ................

Saturday, April 4, 2009

जिसने मदद की वही जेहादी???... जरा सोचिये.."ये कैसी पत्रकारिता???"


जिसने मदद की वही जेहादी???... जरा सोचिये!!! "ये कैसी पत्रकारिता???"

आप सभी का सहयोग चाहिए, ताकि उन तक आवाज़ पहुँच सके जो शीशे के दीवारों के पीछे बैठे खबरों का धंधा और सौदा करते हैं... आवाज़ पहुंचानी पड़ेगी ताकि अपने मानसिक दिवालियेपन से यह समाज का दिमाग न सडाये... जिस माध्यम के ऊपर ज़िम्मेदारी है अराजकता को उजागर करने की वही अराजक हो गया है ...

स्थिति यह हो गयी कि अख़बार उठाओ या न्यूज़ चैनल लगाओ तो पहले अपनी पढाई लिखाई भूल जाओ वरना पागल कर देंगे ये आजकल के पागल पत्रकार... साले... शीशे के पीछे से मुह चिढाते हैं, पत्थर मारने कि कोशिश की तो आपका ही नुकसान... अखबार फाड़ो तो आपके ही पैसे दाण जायेंगे... क्या करे पाठक अख़बार पढना छोड़ दे टीवी केवल नाच गाने के लिए देखे ... या "if you can't avoid it, lie down and enjoy it ... "जैसे विकृत जुमले की तर्ज़ पर हर सुबह अपना मानसिक बलात्कार करवाए ...

ताज़ा प्रकरण जिस महिला ने मुंबई हमलों के दौरान पीडितों की मदद की उसकी तस्वीर आतंकी की तस्वीर बना कर दर्शकों के सामने प्रस्तुत की गई... पूरी ख़बर पढ़ें
Jehadi? me?!
http://www.punemirror.in/index.aspx?page=article&sectid=62&contentid=2009040320090403045805846a9f81381&sectxslt=

"ज़रा सोचिये" "ये कैसा खबरनामा है", ये कैसा न्यूज़ चैनल है ???

सबके ऊपर ऊँगली उठाई ... अब अपने पर ऊँगली उठते देखो...

आओ खिलाएं तुम्हे पाठक दो प्याजा, पाठक मुसल्लम...


हमारे शहर लखनऊ में एक अखबार छपता है, नाम से लगता है कि , सूरज भले ढल जाए इनकी रौशनी ता- क़यामत कायम रहेगी । उजाले का तो भरोसा नहीं पाठकों पर अत्याचार ज़रूर जारी रहेगा... आये दिन नूरा कुश्ती टाइप स्टिंग आपरेशन ...


पहले एक महिला पत्रकार को सड़क पर आधी रात में टहला कर शोहदों से छेड़ छाड़ करवाई। फिर इनकी एक महिला पत्रकार हज़रतगंज स्थित काफ़ी हाउस वाले बरामदे में अधिकारियों को ठण्ड के मौसम में मानवीय मूल्यों का पाठ सिखाने के लिए, एक व्यक्ति के मरने का इंतज़ार करती रहीं और बड़े शान से अगले दिन अपनी फोटूवा छपवाई.

आदरणीय पत्रकार महोदया से कोई पूछे अगर उसे इलाज़ की ज़रुरत थी, तो आप इतनी देर तक उस व्यक्ति के मरने का इंतज़ार क्यों करती रहीं और अगर वो ठण्ड से मर चुका था तो, उसकी मौत पर तमाशा क्यों किया ?? जैसी खबर थी, उसे वैसे ही परोसा जा सकता था।

फिर एक दिन इसी अखबार के अपराध संवाद-दाता (खबरों का दान हम गरीब पाठकों को देने वाले प्रभु) क्वालिस में एके -४७ लेकर बैठे, पुलिस वालों की सतर्कता जांचने के लिए ... ज़ाहिर है सभी फ़ेल हो गए ... अमां मियां जिस शहर में हर दूसरी गाडी में बाहुबली अपने चमचों के साथ बैठकर, हथियार का प्रदर्शन करते हों, वहां किस पुलिस वाले की हिमाकत उस गाडी को रोकने की। बेहतर होता बाहुबलियों के तौर तरीके पर सवाल उठाते ... भला क्यों उठाएंगे। आखिर उनके दरबार में कोर्निश जो बजानी रहती है।

फिर एक दिन वही महिला पत्रकार जिन्होंने एक आदमी की मौत पर तमाशा बनाया , जेड गुडी के मरने पर सारे मर्द जाति को सरवाइकल कैंसर फैलाने का जिम्मेदार बता बैठीं ... इन्टरनेट से चेपा हुआ अनुवादित आर्टिकल ... अनुवाद करने में इधर का उधर हो गया । कल तो और भी अति हो गयी॥ इन्ही के स्वास्थ्य विशेषांक में एक महिला चिकितासक ने लिखा - एक से ज्यादा पुरुष साथी के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से सरवाइकल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। मतलब कि अगर खुदा न खास्ता किसी महिला को सरवाइकल कैंसर हो गया तो, इस "उजाले" भरे ज्ञान से उसके और उसके पति के चरित्र की मौत पहले हो जायेगी, कैंसर तो उसे अपना ग्रास बाद में बनाएगा।

पता नहीं उच्च प्रबंधन नॉएडा में कितनी ऊंचाई पर बैठा है कि उसे अपने सम्पादकीय विभाग की निरंतर होने वाली गलतियाँ नहीं नज़र आ रही हैं। ज्यादातर पत्रकारों ने अपने आप को खुदा और पाठकों को निरा मूरख समझ लिया है ... कूपन से पाठक बटोरा तो जा सकता है , लेकिन यदि अखबार की क्वालिटी वही हुई, जो कूपन के बदले मिलने वाले "उपहार रुपी रिश्वत" की होती है तो पता नहीं कितने आपकी रद्दी साढ़े तीन रुपये में खरीदेंगे और कब तक ? घबराने की ज़रुरत नहीं, अखबार के मालिकों को मंदी की मार का हवाला दिया जा सकता है।


पंजाब में आतंकवाद के दौर में यही तो हुआ था न, व्यक्तिगत दुश्मनी भी आतंकवाद के धर्मखाते में चढा दी गयी थी. वरिष्ठ कचरा परोस कर अपने अपने सिंहासन पर काबिज रहेंगे और कनिष्ठों पर गाज गिरती रहेगी...

http://vikshiptpathak.blogspot.com/

Friday, April 3, 2009

एचटी मीडिया बनाम भड़ास4मीडिया : सुनवाई की अगली तारीख 24 जुलाई


शैलबाला-प्रमोद जोशी    प्रकरण से संबंधित खबरें भारत के नंबर वन मीडिया न्यूज पोर्टल भड़ास4मीडिया पर पब्लिश किए जाने के खिलाफ एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर केस की पहली सुनवाई आज हुई। वादी एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से दायर केस में भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह और तीन अन्य को प्रतिवादी बनाया गया है। हाईकोर्ट में दर्ज इस केस संख्या सीएस (ओएस) 332/2009 की सुनवाई हाईकोर्ट के कोर्ट नंबर 24 में विद्वान न्यायाधीश अनिल कुमार 

ने की।

इस दौरान एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से हाजिर हुए वकील ने केस निपटारे तक भड़ास4मीडिया पर एचटी मीडिया और इससे जुड़े लोगों से संबंधित खबरें प्रकाशित न करने देने का आदेश पारित करने का अनुरोध कोर्ट से किया। इस बाबत एचटी मीडिया और अन्य की तरफ से कोर्ट में अर्जी भी दी गई थी। कोर्ट ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया। प्रतिवादियों की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील निलॉय दासगुप्ता ने कोर्ट को जानकारी दी कि कुछ प्रतिवादियों ने नोटिस 29 मार्च को रिसीव किया है और एक प्रतिवादी के पास अभी तक नोटिस सर्व नहीं हुआ है। इस पर कोर्ट ने वादी एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी के वकील को सभी प्रतिवादियों को नोटिस समेत सभी जरूरी दस्तावेज मुहैया कराने के आदेश दिए। प्रतिवादियों को अगले चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

 मामले की अगली सुनवाई की तारीख 24 जुलाई तय की गई है। प्रतिवादियों के वकील निलॉय दासगुप्ता ने बाद में बताया कि एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से जो केस दायर किया गया है, उससे संबंधित जो नोटिस प्रतिवादियों के पास भेजा गया है, उसमें कई चीजें मिसिंग हैं। उदाहरण के तौर पर नोटिस के पेज नंबर 117 पर जिस कांपैक्ट डिस्क के होने का उल्लेख किया गया है, वो नदारद है। साथ ही सभी प्रतिवादियों को अभी तक नोटिस सर्व नहीं हुआ है। ऐसे में कोर्ट ने वादियों के वकील को सभी दस्तावेज व कागजात प्रतिवादियों को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। वेबसाइट पर वादियों से संबंधित कंटेंट पब्लिश न करने को लेकर जो अनुरोध कोर्ट से किया गया, उसे नामंजूर कर दिया गया। 

यशवंत जी आपके साथ साथ ये हम सभी ब्लागरो की भी जीत है और   मेरा ऐसा  मानना है कि हमें जल्द ही ब्लाग संगठन का निर्माण करना चाहिए जिससे ऐसी  स्थिति से निपटा जा सके 

cg4bhadas.com



भाजपा का घोषणा पत्र


रामनवमी के पावन पर्व पर आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी ने अपना घोषणा-पत्र जारी किया। इस घोषणा-पत्र को जारी करने के मौके पर वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह,मुरली मनोहर जोशी, वैंकेया नायडू, अरुण जेटली  समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। 
भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह ने कहा कि चुनाव के मौके पर कई पार्टियाँ अपने घोषणा-पत्र जारी करती हैं लेकिन चुनाव के बाद सब भूल जाती हैं, लेकिन भाजपा का यह घोषणा-पत्र अपनी कथनी और करनी में अंतर नहीं करेगा। 
 भाजपा के घोषणा पत्र के मुख्य बिंद
आतंकवाद से निपटने के‍ लिए पोटा जैसा सख्त कानून
पूरे देश में माओवादियों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी जाएगी
लड़कियों के लिए 'नारी लक्ष्मी योजना' पूरे देशभर में 
तीन लाख रुपए सालाना आय वालों के लिए आयकर नहीं 
प्रदूषण से निपटने की योजनाओं को बढ़ावा देने का संकल्प
गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों के लिए 2 रुपए किलो चावल
देश में वरिष्ठ नागरिकों को पूरी तरह आयकर में छूट दी जाएगी
घोषणा पत्र में राम मंदिर का मुद्दा भी
रामसेतु को नहीं टूटने दिया जाएगा
मध्यम वर्ग के लिए सस्ता मकान लोन 
सेना के लिए अलग वेतन आयोग बनाएँगे
अयोध्या में विराट राम मंदिर बनाने का वादा 
देशभर में गुजरात की आईटी नीति लागू की जाएगी
विदेशी बैंकों में जमा कालेधन को वापस लाया जाएगा
आगामी 5 वर्षों में एम्स जैसे 6 अस्पताल बनाने की योजना 
पूरे देश में हर रोज 15 किलोमीटर हाई-वे का निर्माण किया जाएगा
सेना में एक रैंक, एक पेंशन की नीति को लागू करने की योजना 
देशभर में नदियों को जोड़ने वाली योजना पर अमल किया जाएगा
गरीबी रेखा से नीचे पढ़ने वाली हर लड़की को साइकिल दी जाएगी
यात्रा करने वाले बुजुर्गों की आयु सीमा 65 के बजाय 60 वर्ष होगी
कम्प्यूटर की कीमतें कम होंगी, ताकि हर आदमी इसे खरीद सके 
* 2014 तक सबके लिए स्वास्थ्य योजना पर अमल किया जाएगा 
                लोक लुभावन सभी वर्ग के लिए सब कुछ है इस घोषणा पत्र में 

Tuesday, March 31, 2009

किलेबंदी के बजाये कांग्रेस की सेंधमारी पर ज्यादा विश्वाश - भाजपा


विधानसभा के ठीक बाद लोकसभा चुनाव की गहमा गहमी जोर पकड़ने लगी लिहाजा हर राजनैतिक दल ने स्टार  प्रचारक से लेकर गीतों तक हर वो पतैरे अपनाने  में कही परहेज नहीं किया  जिससे जनता को लुभाया जा सके लेकिन चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने "भूली ताहि बिसार दे" का नारा देते हुए कुछ भूले भटको को राह में ला लोकसभा की अग्नि परीक्षा के लिए  खुद को तैयार  कर लिया है वहीं कांग्रेस रणनीतिकारोँ का मानना है की  शोरगुल  स्टार प्रचारको और जय हो के गीतों से लैस संगीत  के चलते जनता उनके  ख़राब राजनैतिक प्रदर्शन को भूल जायेगी.  उन्होंने चावल की महिमा  का कमाल  पिछले चुनाव में देख लिया सो अब वो  उसी  राह में चलने से भी  किसी तरह का कोई परहेज नहीं  कर रही है लेकिन दूसरी बार सिरमौर बने मुख्यमंत्री रामन सिंह ने गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी से  चुनाव् जीतने का गुर सीखा लिया है और फिर से एक रथ यात्रा  के लिए तैयार है 
                           छत्तीसगढ की बात  करे तो छत्तीसगढ में  दो सीट ही सबसे ज्यादा चर्चित है बिलासपुर और रायपुर  , बिलासपुर में दिलीप सिह जूदेव का सीधा मुकाबला श्रीमती रेणु जोगी से है गौरतलब है कि हिन्दू वादी नेता जूदेव का यह जुमला पिछले चुनाव में बहुत लोकप्रिय हुआ था 'नोट खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं पर अजीत जोगी कांग्रेसी  किले  के  खास सीपहसलार श्रीमती जोगी को बिलासपुर  प्रत्याशी  बनाये जाने के बाद बहुत ही आक्रमक मुद्रा में है .इस तरह श्री जोगी को छोड़ बाकियों की भूमिका केवल संतरी तक ही सीमित है 
रायपुर की बात करे तो रायपुर में रमेश बैस भाजपाई अंगद का रूप ले चुके है  शांत स्वभाव के लिए मशहूर श्री  बैस जिन्होंने ने किसी का भला नहीं किया तो बुरा भी नही , वही काग्रेसी प्रत्याशी भूपेश बघेल जो अपने ही विधानसभा  क्षेत्र  से बुरी तरह परास्त  हो पुनः चुनावी मैदान में है जिनके पास  आपना हारने के लिए कुछ नहीं पर जीत गए तो वाह वाही ही 
                                बहरहाल   प्रत्याशीयों के कारनामे   और राजनैतिक  दल  के हर दिन उभरते नए गठजोड़  उनकी  सत्तासुंदरी  भोग आतुरता को   उजागर कर रहा है पर् छत्तीगढ में  भाजपा के  रणनीतिकार अपनी किलेबंदी करने के बजाये कांग्रेस की सेंधमारी पर ज्यादा विश्वाश कर रहे है                                                                                                                                  


Sunday, March 29, 2009

"नाट फार वोट"



५० साल लग गए ये सुविधा पाने में "नाट फार वोट" पर अभी भी ये अधुरा है जब नाट फार वोट का अधिकार जनता को दिया ही जा रहा है तो इसे बलेट में शामिल करना चाहिए जैसे चुनाविं प्रत्याशियों के नाम होते है और चुनाव चिन्ह की ही तरह सबसे ऊपर "नाट फार वोट" एक चीन्ह के साथ अन्कित होना चाहिए ऐसा मेरा सुझाव है. सबसे पहले या ऊपर की पैरवी मै इस लिए कर रहा हु क्यों कि हिंदुस्तान में अभी साक्षरता १००% नहीं हुई है सो इसे बैलेट में ही शामिल करते हुए प्रथम स्थान पर ही रखना चाहिए ,यह व्यवस्था रजिस्टर के विकल्प से ज्यादा प्रभावी होगा .
इसकी आवश्यकता इसलिए भी ज्यादा है क्यों कि अब चुनाव में नेता कम व्यापारी ज्यादा है हा मै इन्हें व्यापारी ही कहुगा क्यों की टिकिट मिलने से से लेकर चुनाव ख़त्म होने तक वर्तमान खर्च का आकलन करे तो कम से कम ५ करोड़ तो होता ही होगा पर हे आकडे अनाधिक्रत है लेकिन सच भी . बावजूद इसके खुली आखो मे धुल डाल कर व्यापारी ही चुनावी मैदान में दिखाई देते है और बस ५ करोड़ लगाइए और ५० या ऊससे भी ज्यादा कमा लीजिये ये उनकी प्रतिभा पर निभर करता है जनता अब इन कमाऊ व्यापारी प्रत्याशी से निजात पाना चाहती है इस लिए भी "नाट फार वोट" का फार्मूला कारगर साबित होगा . पर इसमें एक पहलु और छुट रहा है मै सभी से पूछना चाहता हू कि चुनाव आयोग में तो "नाट फार वोट" का अधिकार जनता को दे दिया पर अगर देश में चुनाव के दौरान किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी ने अगर आपके इस "नाट फार वोट" प्रयोग करते हुए रजिस्टर में हस्ताक्षर कर वोट देने से मना कर दिया तो आप क्या करगे?
बहरहाल चुनाव में वोट करने ,अपने मतों का सही प्रयोग करने और ऐसे बहुत से प्रभावशाली विज्ञापन आपको वोट करने के लिए प्रेरित करते दिखाई देगे पर "नाट फार वोट" के ऐसे प्रभावशाली विज्ञापन और प्रचार प्रसार क्यों नहीं ? लगता है उन्हें डर है कि कही "नाट फार वोट" के चाहने वालो की संख्या ज्यादा हो गई तो फिर ये इनके गले की फांस ना बन जाये

Wednesday, March 25, 2009

आपका मत

छत्तीसगढ छोटा राज्य पर चुनावी हलचले बड़ी बड़ी जिसका परिणाम हम सभी ने हाल ही में समपन्न हुए विधानसभा चुनाव में देख लिया अप्रत्याषित चुनाव नतीजो के सामने भाजपा, काग्रेस के दिग्गजों नेता हार के गर्भ में समां गए फिर एक बार उन्ही दिग्गजों की इज्जत दांव पर है राष्ट्रीय राजनीति की तरह न तो यहाँ कोई तीसरा मोर्चा और न कोई चौथा बावजूद उसके परिणाम में भारी उतर चढाव देखने मिल रहे है आने वाली १६ तारीख फिर एक नया इतिहास रचने की तैयारी में है लेकिन मतदाता का रुखा कोई नहीं समझ पा रहा है कोई भी अभी ये बताने में समर्थ नहीं की ऊट किस करवट बैठेगा. नामांकन प्रकिया के प्रारंभ होते ही सभी ने कमर कस, ली किसी ने अपनी डपली बजाई तो किसी का अपना राग . इन सब के बावजूद मतदाता खामोशी से आंकल में जुटा है युपी बिहार की तरह छत्तीसगढ की राजनीति, राष्ट्रीय राजनीति में न तो सरकार परिवर्तन का मादद रखती है और ना ही सरकार गिराने की हैसियत पर कहते है ना की बुरे वक्त में गधे को भी बाप बना पड़ता है और एक एक की कीमत बहुत होती है ये उन्ही में से एक है तो बेचारे क्या करे लगे राष्ट्रीय राजनीति के आदेशो का पालन करने में लेकिन जनता को इससे क्या उन्हें तो अपनी ही समस्या से मतलब है जो साथ देगा जो काम करेगा वही उनके काम का पर ये भी अब बेमानी सा लगने लगा है क्यों की एक सांप है तो दूसरा अजगर अब जनता बेचारी क्या करे जो कम नुकसान पहुचाये उसे ही चुन लो क्यों की कोई तीसरा विकल्प तो है ही नहीं .


क्रमांक लोक सभा क्षेत्र प्रकार

1 सरगुजा (अ.ज.जा.)
2 रायग़ढ़ (अ.ज.जा.)
3 जान्जगीर चांपा (अ.जा.)
4 कोरबा (सामान्य)
5 बिलासपुर (सामान्य.)
6 राजनांदगांव (सामान्य)
7 दुर्ग (सामान्य)
8 रायपुर (सामान्य)
9 महासमुंद (सामान्य)
10 बस्तर (अ.ज.जा.)
11 कांकेर (अ.ज.जा.)

Thursday, March 19, 2009

मुस्लिम मतदाता क्या सोचते है?


लोकसभा के चुनाव के आते ही मुस्लिम वोट्स की चर्चा होना आम बात है जैसा कि हम इससे पहले की पोस्ट में पढ़ चुके हैं कि मुस्लिम मतदाता राजनितिक दलों के लिए भेंड सामान हैं, वह सौ प्रतिशत सही है| कुछ सवाल और भी है जो सबके ज़ेहन में ज़रूर आते होंगे जैसे- "भारतीय मुस्लिम क्या सोचते है? कौन कौन से मुद्दे हैं जिनपर मुस्लिम मतदाता राजनितिक पार्टीज़ को वोट देंगे? क्या उनके मुद्दे वही होंगे जो बाकी दूसरे भारतीयों के होंगे या फिर उनके कुछ मख़सूस मुद्दे भी है? आदि"  

भारत में पिछले एक साल में राजनैतिक, सुरक्षा और सामाजिक स्थिति बहुत ज्यादा बदल गयी है, जिसके आधार पर कुछ कहना मुश्किल है, पिछले अनुमान पर कायम रहना भ्रम सा होगा | भारत में इस बीते साल में जो कुछ हुआ, उसकी वजह से हिन्दू और मुस्लिम के बीच टेंशन भी है | जो कुछ थोडी बहुत बची है वह वरुण गाँधी और अन्य साम्प्रदायिक नेता पूरी करे दे रहे है | 

सबसे ताज़ी बानगी तो नवम्बर 2008 में मुंबई में हुए हमले से बनती है जो कि पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैबा द्वारा प्रायोजित था | यह तो हमारा भाग्य ही था या हमारे देशवासियों की जागरूकता भरी सूझ बूझ कि किसी हिन्दू-मुस्लिम दंगे की कोई खबर ना ही मुंबई से या देश के किसी अन्य स्थान से आयी| वैसे मुंबई में जो हुआ उसका सीधा मक़सद था दोनों को आपस में लड़वाना | 

लेकिन सब कुछ ठीक रहा यह भी नहीं कहा जा सकता | जामिया नगर में मुस्लिम युवाओं का उत्पीड़न और पुलिस द्वारा मुठभेंड जो कि शक के दायरे में आ गयी थी और फ़र्जी थी | राजनितिक दबाव के चलते बेगुनाह मुस्लिम युवाओं को मार डाला गया | इसके अलावा उत्तर भारत में शांति से रह रहे आजमगढ़ के निवासियों को प्रताडित करने से एक गुस्से और शिकायत की एक लहर मुस्लिम समाज में आ गयी थी | यह भी मुस्लिम समाज के बहुत शोक्ड सदमा है कि गुजरात के 2002 के पीडितों की समस्या जस की तस् है |  

भारत के लगभग सभी शहरों में अभी भी सुरक्षा की दृष्टि से उठाये गए सवालों की वजह से मुस्लिम की हालत भी ध्यान आकर्षित करती है | ज्यादातर शहरों में मुस्लिम को यह विश्वाश नहीं है, किसी भी तरह से विश्वाश नहीं है कि पुलिस उनसे सभ्य सुलूक करेगी |

मैं आपको एक सच्ची घटना बताता हूँ- मेरे एक दोस्त ने जो कि मुस्लिम था, पासपोर्ट कार्यालय से अपने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था, उसका पासपोर्ट बन भी गया और डाकिया उसे डिलीवर करने उसके घर गया| पासपोर्ट देते समय उसने मेरे दोस्त से कहा- भैया ! बहरवा जाईके बम वम मत फोड़ दीहs , नाहीं तs हमर नौकरी चल जाई !" अब आप ही बताईये समाज में जो लहर है वह क्या सही है | 

दूसरा मुद्दा जो मुसलमानों के लिए अहम् है वह है कि सरकार या किसी भी राजनैतिक पार्टी का सच्चर कमिटी की सिफारिशों को लागू करने में नाकाम रहना | सच्चर कमिटी की रिपोर्ट में भारत के मुसलमानों के हालत और उसके समाधान का पूरा इंतेज़ाम है | आज से दो साल पहले यह रिपोर्ट आयी थी और उसे आधे अधूरे मन से और निचले स्तर पर HR मंत्रालय पर काम हुआ लेकिन उसके बाद कोई भी एक्शन अभी तक नहीं लिया गया | यहाँ तक की सरकार इसे पार्लियामेंट में बहस के लिए भी नहीं ले गयी ना ही इसमें कुछ काम किया | 

ऊपर दिए गए मुद्दे क्या कम थे जो कुछ राजनैतिक पार्टियाँ भारत-अमेरिकी परमाणु करार को भी मुस्लिम मुद्दे से जोड़ने जैसा घृणित कार्य कर बैठीं | बेहद दुखद था कि उन्होंने इसे मुस्लिम विरोधी करार दिया था| इसी तरह के बेवजह के मुद्दों से कुछ कथित सेकुलर राजनैतिक पार्टियों अपने स्वार्थ और फायदे के लिए लगातार मुस्लिम वोट बटोरती आ रही हैं | 
 
ज्यादातर चुनाव में पार्टियाँ यह कोशिश करती है कि वह बड़े से बड़े पैमाने पर मुस्लिम्स' वोट्स बटोर लें और उसके लिए वह तरह तरह के हथकंडे अपनाती हैं और मुसलमानों की भावनाओं को टटोल कर अपने चुनावी वादे करती है जैसे- उर्दू को दूसरी भाषा बनाना, जुमे की नमाज़ को अटैंड करने के लिए स्कूल में आधे दिन की छुट्टी का ऐलान, मुसलमानों के पीर और औलियाओं की कब्र (मज़ार) पर जाना, कुछ मुस्लमान लीडर्स का पार्टियों द्वारा सार्वजनिक रूप से प्रसंशा करना आदि!  

मुसलमान आज देख रहा है, राजनैतिक पार्टियों और उम्मीदवारों का ट्रैक रिकॉर्ड का अध्ययन कर रहा है कि उन्होंने ने मुस्लिम समुदाय के लिए क्या किया? उनके भले के लिए क्या किया और बुरे में क्या किया? उम्मीदवारों को इसी आधार पर तौला जायेगा, इस विधान सभा चुनाव में!!! आज यह मांग बहुत तेजी से उठ रही है कि वह पार्टी जो ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा मुस्लिम को दे वही वोट की हक़दार होगी|  

मुसलमान यह चाहते है कि उनसे पुलिस द्वारा अनुचित तरीके से मुसलमान होने की वजह से प्रताडित ना किया जाये या बेवजह उनके युवाओं को पुलिस उठा कर ना ले जाये और बाद में उस पर फर्जी आरोप लगा कर जेल भेज दे या आतंकी का ठप्पा लगा दे | उसे गुजरात जैसे हादसों का दुबारा सामना न करना पड़े | वह नज़र रख रहें हैं कि कौन सच्चर कमिटी की सिफारिशों को अमल में लायेगा, कौन मुसलमानों की बदहाली हो ख़तम करेगा, कौन मुसलमानों को सम्मान से जीने के लिए क़दम उठाएगा, कौन उसे दोयम के बजाये बराबर का समझेगा | वह चाहता है कि भारतीय समाज में उसे भी इज्ज़त से जीने के लिए ज़मीन, आसमान और आज़ादी चाहिए!  


देश के ज़्यादातर प्रदेशों में अन्य प्रदेशों के समान ही आधार हैं जिन से यह तय होगा कि वह किसे वोट देंगी | लेकिन अन्य मुद्दों पर मुसलमानों के वोट्स उधर ही जायेंगे जिधर दुसरे भारतीय के जैसे - मुस्लिम दलित मुद्दा, यह मुद्दा हिन्दू दलित और ईसाई दलित के समान ही है | मुस्लिम OBC मुद्दा- यह मुद्दा हिन्दू OBC और ईसाई OBC के समान ही है| निम्न आय वर्ग में गरीब मुस्लिम का वोट भी वहीँ जायेगा जहाँ गरीब हिन्दू या गरीब ईसाई या दुसरे गरीबों का जायेगा | गरीब तो यह देखेंगे (चाहे वो कोई हों) कि कौन उनके infrastructure को संवारेगा और उनके लोकेलिटी को ऊपर उठने मौक़ा देगा| कोंग्रेस और बीजेपी जैसी राष्ट्रिय स्तर की पार्टियों में मुस्लिम की दिलचस्पी का ग्राफ कम होता जा रहा है और उनका वोट स्थानीय पार्टियों हथियाती जा रहीं है जिनमे प्रमुख हैं- समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रिय जनता दल, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, DMK, AIDMK आदि|
"भारत का मुसलमान उन्हें पार्टियों द्वारा हांथों हाँथ लिए जाने और लुभावने वादों आदि से अब सतर्क हो चूका है | इसके बजाये वह देख रहा है उसके साथ साफ़-सुथरा और समानता का व्यवहार ! किसी और चीज़ से ज़्यादा मुस्लिम्स उसे वोट देने के लिए अधिक झुकेंगे जो भारत में secular democratic structure को genuinely promote करेगा, ठीक उसी तरह से जैसे मुग़ल काल के बादशाहों के समय में था जिन्होंने एक हज़ार साल भारत देश पर एकछत्र शक्तिशाली शासन करने के बाद भी हिन्दू मुस्लिम सौहार्द बरक़रार रखा !"

सलीम खान 
संरक्षक 
स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़  
लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश

Monday, March 16, 2009

वरुण गाँधी ने उगला मुसलामानों के खिलाफ ज़हर !


उत्तर प्रदेश के पीलीभीत संसदीय क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे वरुण गांधी ने बरखेडा में चुनावी सभा के दौरान मुसलमानों के खिलाफ जमकर ज़हर उगला। उन्होंने देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा। उनके इस आक्रामक तेवर से बीजेपी भी सकते में है। चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भी जारी किया। वरुण ने हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में एक रैली में कहा था,
'यह हाथ नहीं है। यह कमल का हाथ है। यह मुसलमानों का सर काट देगा, जय श्रीराम।'

एक अन्य सभा में उन्होंने कहा,
'अगर कोई हिंदुओं की तरफ उंगली उठाएगा या समझेगा कि हिंदू कमजोर हैं और उनका कोई नेता नहीं हैं, अगर कोई सोचता है कि ये नेता वोटों के लिए हमारे जूते चाटेंगे तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा।'
वरुण ने कहा,
'जो हाथ हिंदुओं पर उठेगा, मैं उस हाथ को काट दूंगा।'
वरुण गांधी ने देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा। उन्होंने कहा, गांधीजी कहा करते थे कि कोई इस गाल पर थप्पड़ मारे तो उसके सामने दूसरा गाल कर दो ताकि वह इस गाल पर भी थप्पड़ मार सके। यह क्या है! अगर आपको कोई (मुसलमान) एक थप्पड़ मारे तो आप उसका हाथ काट डालिए कि आगे से वह आपको थप्पड़ नहीं मार सके।  

वरुण ने अपने विरोधियों पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा,
'हमारे पास जो उम्मीदवारों की जो लिस्ट है, उस पर सभी दलों के प्रत्याशियों के फोटो लगे हैं। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की तस्वीर देखकर मेरी मौसी की बेटी ने कहा कि भैया मुझे नहीं पता था कि आपके खिलाफ ओसाम बिन लादेन चुनाव लड़ रहा है।'
मैं यहाँ पर बताता चलूँ कि सपा से रियाज़ अहमद चुनाव लड़ रहें हैं| इस वरुण ने कहा,  

'भले ही अमेरिका ओसामा को नहीं खोज पाया, पर मैं इस ओसामा को मजा चखा कर छोड़ूंगा।'  

वरुण का यहाँ तक कहना है कि रात में अगर वह किसी मुसलमान की शक्ल देख लें तो बेहोश हो जायेंगे | बड़े ही डरावने लगते हैं ये मुसलमान |  

बीजेपी एमपी मेनका गांधी के बेटे वरुण के यह बयान बीजेपी को भी रास नहीं आए। बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने इस बहाने कांग्रेस पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि वरुण के भाषण में उनके परिवार का कांग्रेसी अतीत झलकता है। इसमें बीजेपी की परंपरा नहीं दिखती। इससे पहले, सोनिया ने कहा था कि वरुण ऐसी पार्टी से जुडे़ हैं, जिसकी विचारधारा और संस्कृति अल्पसंख्यक विरोधी है।  

मैं आपको फिर बताता चलूँ कि वरुण ने हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में एक रैली में कहा था, 'यह हाथ नहीं है। यह कमल है। यह मुसलमान का सर काट देगा, जय श्रीराम।' एक अन्य सभा में उन्होंने कहा, 'अगर कोई हिंदुओं की तरफ उंगली उठाएगा या समझेगा कि हिंदू कमजोर हैं और उनका कोई नेता नहीं हैं, अगर कोई सोचता है कि ये नेता वोटों के लिए हमारे जूते चाटेंगे तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा।'

अब आप ही बताईये कि क्या ऐसा होगा हमारा युवा भारत और क्या ऐसे होंगे हमारे भारत के युवा नेता??????

स्रोत: नवभारत टाईम्स

Saturday, March 14, 2009

मै चाँद बनना चाहता हू



मै चाँद बनना चाहता हू , सुनकर आश्चर्य हुआ आपको , नही होना चाहिए अगर आप भी शादी शुदा है ऊपर से हिन्दू और आपका दिल कही किसी पर आजाये ,नहीं गलती हो गई , आपको प्यार करने का मन करने लगे ,कोई आपको अच्छा लगता है तब तो बहुत मुश्किल हो गई पर घबराइये नही अब ये सब संभव है रास्ते आपके सामने है बिलकुल बस आवश्यकता है इस प्यार को पूरा करने के लिए लड़की की बस फिर आप भी पहली पत्नी के होते हुए चाँद मोहम्म्द याफिर कुछ और नाम के साथ जब तक जी करे अपने प्यार को परवान चढा सकते है कोई मुझसे ये करने कहता तो एक क्यों मुस्लिम में तो कम से कम चार की इजाजत है तो मै ३ और को इसमें शामिल कर ही सकता था बाद में भले पहली को छोड़ कर सबको तलाक़ दे देता . तो बस आप सोचिये मत आपका मन अल्पकालीन समय के लिए इश्क मोहबत करना चाहता है तो आप ऐसा कर सकते है ये मै नहीं चाँद , चाँद मोहम्द और फिजा ,उनके न्यूज़ चैनेलो में चर्चित खबरों को देख कर तो ऐसा ही लगता है. मैने ये वाकया टीवी में आने वाले सीरियल भंवर में देखा था पर ये इस धटना के पहले कि बात है टीवी सीरियल भंवर १९८४ -८५ में बना होगा सच्ची घट्नवों पर आधारित इस सीरियल में ऐसे ही एक सच्ची घटना ऊललेख किया गया था ठीक वैस ही उसमे भी चाँद की तरह पहले वो मुस्लिम और बाद में फिर हिन्दू बन जाता है कहते ही कि हर चीज के दो पहलु होते है अगर फायद भी है तो नुकसान भी अब हमें तय करना है की हम किस रास्ते को और क्यो चुने इस पुरे प्रकरण में एक और बात उभर के आ रही है कि क्या ये सब इतना आसन है और अगर है तो इसमें परिवर्तन या रोक कि आवश्यकता है अगर यु ही घर्म परिवर्तन से एक के आलावा और भी पत्नियो के प्यार को परवान चढाया जा सकता तो भारत में तो प्यार करने वालो कि कमी नहीं है ऐसे में वे सभी अपने प्यार को परवान च्ढाना चाहेगे जो सबल है क्यों की तलक के बाद उसे मेहर की रकम और भर पोषण जो देना होगा हा ये बात और है की आप जिसेप्यार करना चाह रहे है वो उस लायक है की नहीं यह देखना होगा . घटना उपरांत मुझे तो ऐसा ही लगा रहा है की बस आप तो देखते जाइये की इंडिया में कितने चाँद मोहन जन्म लेते है या फिर चाँद का ही फिर से मन किसी पे आ जाये तो मुस्लिम बनाने की मनाही तो है नहीं फिर से ४ माह के लिए धर्म परिवर्तन कर लेगे

बढ़िया है जब आप वादा ही नहीं करेगे तो काम करे या न करे कोई नहीं बोल सकता आपको..................


बढ़िया है जब आप वादा ही नहीं करेगे तो काम करे या न करे कोई नहीं बोल सकता आपको..................

हाँ....मैं हिन्दू हूँ !!!


'हिंदू' शब्द की परिभाषा

भारत वर्ष में रह कर अगर हम कहें की हिंदू शब्द की परिभाषा क्या हो सकती है? हिंदू शब्द किस प्रकार से प्रयोग किया जाता है? आख़िर क्या है हिंदू? तो यह एक अजीब सा सवाल होगा लेकिन यह एक सवाल है कि जिस हिन्दू शब्द का इस्तेमाल हम वर्तमान में जिस अर्थ के लिए किया जा रहा है क्या वह सही है ?

मैंने हाल ही में पीस टीवी पर डॉ ज़ाकिर नाइक का एक स्पीच देखा, उन्होंने किस तरह से हिंदू शब्द की व्याख्या की मुझे कुछ कुछ समझ में आ गया मगर पुरी संतुष्टि के लिए मैंने अंतरजाल पर कई वेबसाइट पर इस शब्द को खोजा तो पाया हाँ डॉ ज़ाकिर नाइक वाकई सही कह रहे हैं. हिंदू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, कब हुई और किसके द्वारा हुई? इन सवालों के जवाब में ही हिंदू शब्द की परिभाषा निहित है|  

यह बहुत ही मजेदार बात होगी अगर आप ये जानेंगे कि हिंदू शब्द न ही द्रविडियन न ही संस्कृत भाषा का शब्द है. इस तरह से यह हिन्दी भाषा का शब्द तो बिल्कुल भी नही हुआ. मैं आप को बता दूँ यह शब्द हमारे भारतवर्ष में 17वीं शताब्दी तक इस्तेमाल में नही था. अगर हम वास्तविक रूप से हिंदू शब्द की परिभाषा करें तो कह सकते है कि भारतीय (उपमहाद्वीप) में रहने वाले सभी हिंदू है चाहे वो किसी धर्म के हों. हिंदू शब्द धर्म निरपेक्ष शब्द है यह किसी धर्म से सम्बंधित नही है बल्कि यह एक भौगोलिक शब्द है. हिंदू शब्द संस्कृत भाषा के शब्द सिन्धु का ग़लत उच्चारण का नतीजा है जो कई हज़ार साल पहले पर्सियन वालों ने इस्तेमाल किया था. उनके उच्चारण में 'स' अक्षर का उच्चारण 'ह' होता था|  

हाँ....मैं, सलीम खान हिन्दू हूँ !!!

हिंदू शब्द अपने आप में एक भौगोलिक पहचान लिए हुए है, यह सिन्धु नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया था या शायेद इन्दुस नदी से घिरे स्थल पर रहने वालों के लिए इस्तेमाल किया गया था। बहुत से इतिहासविद्दों का मानना है कि 'हिंदू' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब्स द्वारा प्रयोग किया गया था मगर कुछ इतिहासविद्दों का यह भी मानना है कि यह पारसी थे जिन्होंने हिमालय के उत्तर पश्चिम रस्ते से भारत में आकर वहां के बाशिंदों के लिए इस्तेमाल किया था।  

धर्म और ग्रन्थ के शब्दकोष के वोल्यूम # 6,सन्दर्भ # 699 के अनुसार हिंदू शब्द का प्रादुर्भाव/प्रयोग भारतीय साहित्य या ग्रन्थों में मुसलमानों के भारत आने के बाद हुआ था।  

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में पेज नम्बर 74 और 75 पर लिखा है कि the word Hindu can be earliest traced to a source a tantrik in 8th century and it was used initially to describe the people, it was never used to describe religion...  पंडित जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक हिंदू शब्द तो बहुत बाद में प्रयोग में लाया गया। हिन्दुज्म शब्द कि उत्पत्ति हिंदू शब्द से हुई और यह शब्द सर्वप्रथम 19वीं सदी में अंग्रेज़ी साहित्कारों द्वारा यहाँ के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु प्रयोग में लाया गया। 

नई शब्दकोष ब्रिटानिका के अनुसार, जिसके वोल्यूम# 20 सन्दर्भ # 581 में लिखा है कि भारत के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु (ईसाई, जो धर्म परिवर्तन करके बने को छोड़ कर) हिन्दुज्म शब्द सर्वप्रथम अंग्रेज़ी साहित्यकारों द्वारा सन् 1830 में इस्ल्तेमल किया गया था|  

इसी कारण भारत के कई विद्वानों और बुद्धिजीवियों का कहना है कि हिन्दुज्म शब्द के इस्तेमाल को धर्म के लिए प्रयोग करने के बजाये इसे सनातन या वैदिक धर्म कहना चाहिए. स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्ति का कहना है कि "यह वेदंटिस्ट धर्म" होना चाहिए|  

इस प्रकार भारतवर्ष में रहने वाले सभी बाशिंदे हिन्दू हैं, भौगोलिक रूप से! चाहे वो मैं हूँ या संजय सेन सागर जी या कोई अन्य |  

आपकी आलोचनाओं का स्वागत है|  

सलीम खान
स्वच्छ सन्देश : हिन्दोस्तान की आवाज़
लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश

विधानसभा चुनाव में जनाधार खो चुके प्रत्याशी लोकसभा के लिए कितने उपयुक्त

आपको याद होगा महज 3 माह पूर्व सम्पन्न  हुए विधानसभा चुनाव और उनके अप्रत्याषित नतीजे  जिसमे  बड़े पैमाने पर  छत्तीसगढ में  भाजपा और कांग्रेसी द्दिगजो को हार का मुख देखना पड़ा था जिसका कारण  तो वे  अभी तक   खोज भी नहीं पाए थे कि अब वे लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी  के  दौड में शामिल हो गए  और  अब ये तो खोज  का विषय है कि जो प्रत्याशी एक विधान सभा चुनाव में अपना जनाधार खो कर हार का मुख देख चुके है   वह लोकसभा क्षेत्र में अपना जनाधार कैसे साबित करेगे क्यों कि लोकसभा क्षेत्र में कम  से कम एक से अधिक विधानसभा क्षेत्र  तो होगे ये तो तय है और वोटरों कि संख्या भी कही ज्यादा बावजूद इसके भाजपा और काग्रेस इस लोकसभा चुनाव में हार का मुख देख  चुके  हारे हुए प्रत्याशी के लिए दांव क्यों लगा रहा ही है ये बात समझ से परे है अगर ऐसा ही है तो ये बात नए प्रत्याशीयो के लिए ठीक है पर लगता है कि राजनीति में अच्छे प्रत्याशीयो का टोटा सा पड़ा गया है तो क्या  करे बेचारे.
  वही   आप इन चुनाव हारे हुए प्रत्याशियों के चुनावी आकडो को ध्यान से देखे तो पाएगे की इनको    मिलने वाला वोटो का प्रतिशत भी बहुत कम है मतलब ये अगर लोकसभा चुनाव में आयेगे तो आप अंदाजा लगा लीजिये की किस्मत के भरोसे कोई जीत जाये तो बात अलग है   पर  खुद की पहचान, काम और मुद्दों से तो ये संभव नहीं है

यहाँ  गैरतलब बात यह  भी है कि   बामुशकील    ही कोई ऐसा  प्रत्याशी  होगा जिसे सम्पूर्ण लोकसभा क्षेत्र में  जनता जानती पहचानती  हो   इनमे से बहुत से प्रत्याशी तो  ऐसे  भी  है जो  दुसरे जिले से आयातित है    जिसे अपने ही लोकसभा क्षेत्र जिससे वे चुनावी मैदान में है वहा  के  कुल क्षेत्र  बारे में भी  पता न  हो ,   ऐसा हो सकता है क्यों कि  वो  अभी एक विधानसभा  क्षेत्र   का ही   प्रतीनिध्त्व करते आये पर वहा से भी जनता ने नकार दिया  और ऊपर से परिसीमन ने तो क्षेत्र का नक्शा ही बदल  दिया है अब आप ही बताइए की ऐसे में इन हारे हुए विधानसभा प्रत्याशी को  लेकर  लोकसभा चुनाव  में दांव लगाना कितना  उपयुक्त होगा.  भाजपा के लिए बात कम हद तक लागु होती है पर कांग्रेस , कांग्रेसियो के लिए तो ८० फीसदी लागु होती  है कांग्रेस  में ऐसे  कई नाम तो आस पास के ही जिलो से है जो बुरी तरह से विधानसभा चुनाव में परास्त  हो चुके है अब वे सब फिर से अपनी हार  की पुनरावृत्ति को  कैसे रोका पाते है  यह देखना होगा  या यु कहे की  उनको लोकसभा प्रत्याशी  बना  दिए जाने पर वे इस  लोकसभा चुनाव के  फाइनल में अपनी हार की पुनरावृत्ति   रोक   कांग्रेस को नुकसान  से कैसे बचाते  है  यह भी देखना होगा  .  और दुसरे जिले के आयातित प्रत्याशी का जादू जनता पर कितना चलता है यह चुनाव के बाद दिख ही जायेगा