Saturday, March 14, 2009

विधानसभा चुनाव में जनाधार खो चुके प्रत्याशी लोकसभा के लिए कितने उपयुक्त

आपको याद होगा महज 3 माह पूर्व सम्पन्न  हुए विधानसभा चुनाव और उनके अप्रत्याषित नतीजे  जिसमे  बड़े पैमाने पर  छत्तीसगढ में  भाजपा और कांग्रेसी द्दिगजो को हार का मुख देखना पड़ा था जिसका कारण  तो वे  अभी तक   खोज भी नहीं पाए थे कि अब वे लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी  के  दौड में शामिल हो गए  और  अब ये तो खोज  का विषय है कि जो प्रत्याशी एक विधान सभा चुनाव में अपना जनाधार खो कर हार का मुख देख चुके है   वह लोकसभा क्षेत्र में अपना जनाधार कैसे साबित करेगे क्यों कि लोकसभा क्षेत्र में कम  से कम एक से अधिक विधानसभा क्षेत्र  तो होगे ये तो तय है और वोटरों कि संख्या भी कही ज्यादा बावजूद इसके भाजपा और काग्रेस इस लोकसभा चुनाव में हार का मुख देख  चुके  हारे हुए प्रत्याशी के लिए दांव क्यों लगा रहा ही है ये बात समझ से परे है अगर ऐसा ही है तो ये बात नए प्रत्याशीयो के लिए ठीक है पर लगता है कि राजनीति में अच्छे प्रत्याशीयो का टोटा सा पड़ा गया है तो क्या  करे बेचारे.
  वही   आप इन चुनाव हारे हुए प्रत्याशियों के चुनावी आकडो को ध्यान से देखे तो पाएगे की इनको    मिलने वाला वोटो का प्रतिशत भी बहुत कम है मतलब ये अगर लोकसभा चुनाव में आयेगे तो आप अंदाजा लगा लीजिये की किस्मत के भरोसे कोई जीत जाये तो बात अलग है   पर  खुद की पहचान, काम और मुद्दों से तो ये संभव नहीं है

यहाँ  गैरतलब बात यह  भी है कि   बामुशकील    ही कोई ऐसा  प्रत्याशी  होगा जिसे सम्पूर्ण लोकसभा क्षेत्र में  जनता जानती पहचानती  हो   इनमे से बहुत से प्रत्याशी तो  ऐसे  भी  है जो  दुसरे जिले से आयातित है    जिसे अपने ही लोकसभा क्षेत्र जिससे वे चुनावी मैदान में है वहा  के  कुल क्षेत्र  बारे में भी  पता न  हो ,   ऐसा हो सकता है क्यों कि  वो  अभी एक विधानसभा  क्षेत्र   का ही   प्रतीनिध्त्व करते आये पर वहा से भी जनता ने नकार दिया  और ऊपर से परिसीमन ने तो क्षेत्र का नक्शा ही बदल  दिया है अब आप ही बताइए की ऐसे में इन हारे हुए विधानसभा प्रत्याशी को  लेकर  लोकसभा चुनाव  में दांव लगाना कितना  उपयुक्त होगा.  भाजपा के लिए बात कम हद तक लागु होती है पर कांग्रेस , कांग्रेसियो के लिए तो ८० फीसदी लागु होती  है कांग्रेस  में ऐसे  कई नाम तो आस पास के ही जिलो से है जो बुरी तरह से विधानसभा चुनाव में परास्त  हो चुके है अब वे सब फिर से अपनी हार  की पुनरावृत्ति को  कैसे रोका पाते है  यह देखना होगा  या यु कहे की  उनको लोकसभा प्रत्याशी  बना  दिए जाने पर वे इस  लोकसभा चुनाव के  फाइनल में अपनी हार की पुनरावृत्ति   रोक   कांग्रेस को नुकसान  से कैसे बचाते  है  यह भी देखना होगा  .  और दुसरे जिले के आयातित प्रत्याशी का जादू जनता पर कितना चलता है यह चुनाव के बाद दिख ही जायेगा


 

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कुछ तो कहिये, क्यो की हम संवेदन हीन नही

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