क्या भड़ास निकले साहेबान यहाँ हम आराम से अपने वातानुकूलित घर में चैन-ओ-सुकून से हैं वहां सलवा-जुडूम के नाम पे छत्तीसगढ़ में पुलिस पब्लिक को शूट कर रही है कितना बुरा हल है ६०० ग्राम को उजाड़ दिया गया लोग कैसे जी रहें हैं कितने सालों से लोग शिविरों में अपनी "आजाद कैद" में जी रहे हैं---> न तो ग्रामीण परिवेश है, न तो छठी-बरी है, न तो परंपरागत विवाह, बचों का बचपना खो गया है जैसे हमारे पूर्वज आज़ादी के पहले महसूस करते रहें है वयेसे ही बच्चो की मान स्थिति है हमें घर से चार दिन बहार रहने में अटपटा लगता है सोचो लोग बरसों से घर से बहार शिविरों में रह्राहें हैं .....क्या लिखें क्या भड़ास निकालें दोस्तों मेरा छत्तीसगढ़ परेशां है हो सके तो इसकी परेशानी डोर करो अमन कटघोरा
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क्या भड़ास निकले साहेबान यहाँ हम आराम से अपने वातानुकूलित घर में चैन-ओ-सुकून से हैं वहां सलवा-जुडूम के नाम पे छत्तीसगढ़ में पुलिस पब्लिक को शूट कर रही है कितना बुरा हल है ६०० ग्राम को उजाड़ दिया गया लोग कैसे जी रहें हैं कितने सालों से लोग शिविरों में अपनी "आजाद कैद" में जी रहे हैं---> न तो ग्रामीण परिवेश है, न तो छठी-बरी है, न तो परंपरागत विवाह, बचों का बचपना खो गया है जैसे हमारे पूर्वज आज़ादी के पहले महसूस करते रहें है वयेसे ही बच्चो की मान स्थिति है हमें घर से चार दिन बहार रहने में अटपटा लगता है सोचो लोग बरसों से घर से बहार शिविरों में रह्राहें हैं .....क्या लिखें क्या भड़ास निकालें दोस्तों मेरा छत्तीसगढ़ परेशां है हो सके तो इसकी परेशानी डोर करो
अमन कटघोरा
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कुछ तो कहिये, क्यो की हम संवेदन हीन नही