Saturday, February 28, 2009

दो साल में वन विभाग नहीं जान पाया कि वो जंगली भैंसे हैं या घरेलू नस्ल का





बताइए भला अपने कभी ऐसा कुछ सुना है चलो हम है सुनते है
20 हेक्टेयर एरिया को फेंसिंग तार से घेरकर दो भैंसों को रखा गया है जिसका नाम उदंती अभयारण । वे जंगली भैंसे हैं या घरेलू नस्ल के, इसका पता वन अमले को दो साल में भी नहीं लगा दो साल पहले इन जानवरों का डीएनए टेस्ट कराया गया था, लेकिन रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। देवभोग प्रवास के दौरान वन मंत्री श्री उसेंडी ने अधिकारियों से वनभैंसा दिखाने को कहा, तो अधिकारी हड़बड़ा गए। आनन-फानन में अधिकारियों ने उन भैंसों को दिखाया, जिन्हें देखकर मंत्री भौचक्क रह गए। चलो मंत्री महोदय तो पहचान गए की ये वन भैसा नहीं है ,मंत्री महोदय महोदय द्वारा पूछने पर ... जंगली भैंसे हैं या घर के?मौके पर उपस्थित अधिकारी कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दे पाए पार्टी कार्यकर्ताओं से जानकारी ली। तब पता चला कि दो साल पहले इनका डीएनए टेस्ट किया गया है। मंत्री ने एसडीओ केएल निर्मलकर और रेंजर मनोज शाह से टेस्ट की रिपोर्ट के बारे में जानकारी मांगी, तो वे गोलमोल जवाब देने लगे। अधिकारियों के टालमटोल रवैए से मंत्री ताड़ गए कि मामला गड़बड़ है। जंगली भैंसा देखने की उनकी इच्छा खत्म हो गई

अब इस बात से आप जान लिजीये की छतीसगढ में क्या और किस तरह से चल रहा है
१. दो साल में वन विभाग नहीं जान पाया कि वो जंगली भैंसे हैं या घरेलू नस्ल का
२. आखिर कार बता देते तो उनकी कमाई चली जाती
३. क्या इसतरह से वन विभाग लापरवाही कर सकता है वो भी प्रांतीय प्राणी के लिये
४. अगर वो जंगली भैंसे होता तो जवाब नहीं देते वन विभाग के अधिकारी
५. अगर वो जंगली भैंसे नहीं तो दो साल से उस पर क्या गये खर्च का जिमेदार कौन और भरपाई कौन करेगा
६. इसी तरह से प्रांतीय पक्षी मैना के संरक्षण के लिए कि करोडो रु खर्च किये गए है कही उसका हाल भी एसे ही तो नहीं है
सोचो छत्तीसगढ की जनता की ये क्या हो रहा है

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कुछ तो कहिये, क्यो की हम संवेदन हीन नही

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